Advanced Search
Search Results
13 total results found
जय जिनशाशन समूह चर्चा
जैन धर्म के मूल सिद्धांत
रहस्य, सिद्धांत और अमिमांसित प्रश्न
आराधक
जो ज्ञान, दर्शन और चारित्र की समयक आराधना करे वह आराधना करने वाला या आराधक कहलाता है। आगम में स्पष्ट परिभाषा नहीं मिलती है पर मुख्यतर से दो परिभाषा के भाव मिलते है जो ज्ञान, दशर्न, चारित्र की आराधना करे वह आराधक। जो अंतिम समय में किए हुए पापों की आलोचना...
प्रमत्त और अप्रमत्त संयत की स्थिथि
प्रचलित स्तिथि इन दोनों गुणस्थान की उत्कृष्ट अंतर्मुहूर्त मानी जाती है। एक झूले (swing) का उदाहरण देके कहा जाता है कि साधु एक गुणस्थान में ज़्यादा देर नहीं रहता और इन दोनों में लगातार झूले जैसे समय बिताते है। इस मान्यता का आधार और प्रमाण और कुछ विपरीत प्रमाण ...
जातिस्मरण ज्ञान
संज्ञि ञान / जातिस्मरणज्ञान, संज्ञी जीवों को प्राप्त होने वाला ज्ञान जिनसे अपने पूर्व के भव और जाति का स्मरण होता है। शुभ अध्यवसाय से, शुभ परिणाम से और विशुद्ध होती हुई लेश्याओं से तदावरणीय कर्मों (जातिस्मरण को आवृत्त करनेवाले ज्ञानवरणिय कर्मों) के क्षयोपशम स...
मनःपर्यवज्ञान
मनःपर्यवज्ञानावरणीय कर्मों का क्षयोपशम करने पर मनःपर्यवज्ञान होता है। मनःपर्यवज्ञान मनुष्य क्षेत्र (अढ़ाई द्वीप) में रहे हुए प्राणियों (सन्नी तिर्यंच और मनुष्य) के मन द्वारा परिचिन्तित अर्थ को प्रगट करनेवाला है। मनःपर्यवज्ञानप्रत्यक्ष एक प्रकार का इन्द्रियप्रत...
Introduction
जैन दर्शन में जीवत्व, मोक्ष और मोक्ष मार्ग समझाने के लिए अनेक तत्व और सिद्धांत है। मुख्यतर नव तत्व माने गए है। नव तत्वनव तत्व जैन धर्म है। जैन धर्म को समझना है तो नव तत्वों को समझना है। नव तत्व जाना तो सब जाना, नहीं तो कुछ नहीं जाना। ये वे core principles है...
पाँच समवाय
प्रचलित पाँच समवाय - काल, स्वभाव, नियति, पूर्वकृत (कर्म), और पुरुषार्थ ये पाँचों ही कारण हर कार्य के प्रति लागू होते हैं। अन्य कारणों का निषेध करके पृथक् पृथक् एक एक का पक्ष पकड़ने पर ये पाँचों ही मिथ्या हैं और सापेक्षरूप से परस्पर मिल जाने पर ये पाँचों ही सम्...
चार अमर गुणस्थान
वैसे तो तीन गुणस्थान अमर माने गए हैं - तीसरा, बारहवां और तेरहवां (३, १२, १३)। परंतु यदि गहराई से विचार किया जाए, तो चौदहवां गुणस्थान भी अमर गुणस्थान की श्रेणी में आता है। 14 वे गुणस्थान में स्थित जीव न तो कालधर्म को प्राप्त होता है पूरा पूरा काल बिना मृत्यु...
अव्यवहार राशि
इस संबध में अनेक प्रकार की धारनाये प्रचलित है। आगम मे स्पष्ट रूप से कही पर भी व्यवहार अव्यव्हार राशि का उल्लेख नहीं है। कोई कोई परम्परा व्यवहार/अव्यव्हार राशि को ही नहीं मानती है। मानने के कारण या आधार विशेषनवती किताब में उल्लेख। गणित बिगड़ जाता है - पर...
आयुष बंध में अबाधा काल
पन्नवणा सूत्र में आयुष्य बंध के तुरंत बाद आयुष कर्म का प्रदेशोदय शुरू हो जाता है भले ही विपाक उदय नरकादि गति में जाने पर ही शुरू होता है इस अपेक्षा बिना भोगी जाने वाली पहले भव की आयु में विपाकोदय नहीं, पर आयुष कर्म का प्रदेशोदय चालू हो जाने से अबाधाकाल नहीं मा...
दुख किन जीवों में ज़्यादा?
प्रचलित मान्यता है की "निगोद के जीवों को सबसे ज़्यादा, नरक से भी अनंत गुना दुख होता है।"। इसका स्पष्ट प्रमाण आगम में नहीं मिलता। सुना तो यही था की नरक में सबसे ज़्यादा दुःख होता है। दोनो मतों के आधार और प्रमाण का संग्रह - निगोद में ज़्यादा दुःख जं॑ नरए...