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प्रमत्त और अप्रमत्त संयत की स्थिथि
प्रचलित स्तिथि इन दोनों गुणस्थान की उत्कृष्ट अंतर्मुहूर्त मानी जाती है। एक झूले (swing) का उदाहरण...
अव्यवहार राशि
इस संबध में अनेक प्रकार की धारनाये प्रचलित है। आगम मे स्पष्ट रूप से कही पर भी व्यवहार अव्यव्हार र...
आयुष बंध में अबाधा काल
पन्नवणा सूत्र में आयुष्य बंध के तुरंत बाद आयुष कर्म का प्रदेशोदय शुरू हो जाता है भले ही विपाक उदय...
दुख किन जीवों में ज़्यादा?
प्रचलित मान्यता है की "निगोद के जीवों को सबसे ज़्यादा, नरक से भी अनंत गुना दुख होता है।"। इसका स्...
चार अमर गुणस्थान
वैसे तो तीन गुणस्थान अमर माने गए हैं - तीसरा, बारहवां और तेरहवां (३, १२, १३)। परंतु यदि गहराई से ...
आराधक
जो ज्ञान, दर्शन और चारित्र की समयक आराधना करे वह आराधना करने वाला या आराधक कहलाता है। आगम में स्प...
Introduction
जैन दर्शन में जीवत्व, मोक्ष और मोक्ष मार्ग समझाने के लिए अनेक तत्व और सिद्धांत है। मुख्यतर नव तत्...
मनःपर्यवज्ञान
मनःपर्यवज्ञानावरणीय कर्मों का क्षयोपशम करने पर मनःपर्यवज्ञान होता है। मनःपर्यवज्ञान मनुष्य क्षेत्...
जातिस्मरण ज्ञान
संज्ञि ञान / जातिस्मरणज्ञान, संज्ञी जीवों को प्राप्त होने वाला ज्ञान जिनसे अपने पूर्व के भव और जा...
पाँच समवाय
प्रचलित पाँच समवाय - काल, स्वभाव, नियति, पूर्वकृत (कर्म), और पुरुषार्थ ये पाँचों ही कारण हर कार्य...