आयुष बंध में अबाधा काल
पन्नवणा सूत्र में आयुष्य बंध के तुरंत बाद आयुष कर्म का प्रदेशोदय शुरू हो जाता है भले ही विपाक उदय नरकादि गति में जाने पर ही शुरू होता है इस अपेक्षा बिना भोगी जाने वाली पहले भव की आयु में विपाकोदय नहीं, पर आयुष कर्म का प्रदेशोदय चालू हो जाने से अबाधाकाल नहीं माना गया है।
दूसरे कर्मों में प्रदेशोदय और विपाकोदय दोनों ही अबाधाकाल बीतने के बाद शुरू होते है।
यही तो कारण है आयुष कर्म के अबाधाकाल नहीं मानने का।
सिर्फ आयुषकर्म के बंधते ही इसका उदय(प्रदेश) शुरू हो जाता है।
दूसरे सात कर्मों में बंधकाल में से अबाधाकाल घटा कर कर्म निषेक होता है लेकिन आयुष कर्म में बंधते ही इसका निषेक शुरू हो जाता है।
इन दोनों अंतर के कारण ऐसा कह दिया जाता है कि आयुष्य कर्म का अबाधाकाल नहीं होता।
भगवती सूत्र में तो विपाक उदय की अपेक्षा से आयुष कर्म का भी अबाधाकाल भोगा जाने वाला वर्तमान भव का अवशेष आयुष्य मान लिया गया है।